Sunday, December 5, 2010

...झूठ बोलकर

मैं सच की रौशनी बिखेरने में ही लगा रहा,
तमाम लोग बन गए महान झूठ बोलकर।

मेरी ख़ुशी बिछुड़ कर मुझसे चैन कैसे पा गई,
किसी ने भर दिए थे उसके कान झूठ बोलकर।

बढ़ा न पाया कोई अपनी शान झूठ बोलकर,
मगर वो छू रहें हैं आसमान झूठ बोलकर।

कभी तो सच्ची बात कर, कभी तो सबसे प्यार कर,
चली है किसकी उम्रभर दुकान झूठ बोलकर।

हकीक़तों से मुंह मोड़ने का मशविरा न दो मुझे,
तुम ही चलाओ अपना खानदान झूठ बोलकर।
(महेंद्र कुमार श्रीवास्तव)

जनता हूँ सच नहीं बोल पाओगे,
हमें मत बहलाओ झूठ बोलकर।

बड़ी बड़ी बातें कहते हो हर जगह,
इतिहास तो मत बनाओ झूठ बोलकर।

किसी को तनहा छोड़ने से पहले,
अपना तो न बनाओ झूठ बोलकर।

हाथ की लकीरें रातों रात नहीं बदलती,
हमें नींद से न जगाओ झूठ बोलकर।
(निखिल श्रीवास्तव)

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