Friday, July 22, 2011

तमन्ना...


ऐ मुसाफिर...
क्यूँ जारी है ख़ुशी की तलाश
कितनी मायूस है तेरे सपनों की रात

ऐ मुसाफिर, पन्ने तो पलट
देख वो स्याही भी सूख गई
ढलती रही जिसमें ज़िन्दगी तेरी

तेरी इक कोशिश से बन जायेंगे
खुदबखुद असबाग
तो क्यूँ न तू नयी कहानी लिख

मैं मजबूर हूँ...मौसम की तरह
मुझपर मेरा ही बस नहीं
तेरे अरमानों ने ही ज़िंदा रखा है मुझे

मत खोज...
उसका कोई अक्स औ लिबास नहीं
उसे खोजने में तू हर ख़ुशी खो देगा,

मैं एक रोज़, तुमसे मिलने आऊँगी
मुसाफिर लेकिन इंतजार न कर
वादा रहा, तेरे हर गम का हिसाब कर जाऊँगी

मत सोच कि मैं तेरे आंसू नहीं गिनती
मैं तेरी तमन्ना हूँ, यकीं तो कर
तुझे रुलाकर मैं कैसे जी पाऊँगी...

Wednesday, July 13, 2011

ऐ हवा...(2)


आवारा कहूँ या बेकरार तुझको
किसकी तलाश है जो दर दर भटकती है

ठहरती है कहीं न सांस लेती है
बांटती है जिंदगी, खुद खामोश रहती है

किसी के पहलू, किसी के दामन में
जाने तू कैसे रंगों-सांचों में ढलती है

आशियाना, ठिकाना, तेरा घर कहाँ है
पेड़ों, मुंडेरों पर तो बस तू ठहरती है

ग़मों की तेरी लम्बी कहानी है
बरफ के पहलू में तू भी आंसू बहाती है

लेकिन, फितरत तेरी तो मुझ सी ही है
गुस्से में तू भी श्रृष्टि से लड़ती है

ऐ हवा, ठीक मेरे दिल की तरह
तू भी बेताब, हैरान सी फिरती है

ऐ हवा...तू मुझमें मैं तुझमें हूँ
मेरे अरमानों की तरह तू भी दिखती नहीं

ऐ हवा, कुछ तो है हमारे दरमयां
यूँ ही नहीं दिन रात मेरे संग तू चलती है....

ऐ हवा...(1)


काश...
मैं भी होता तुझ सा
आवारा, ऐ हवा...

फिरता कहीं भी
मनमाना ऐ हवा

बेसुध, बेपरवाह
अल्हड़, दीवाना ऐ हवा

ठहरकर, आंसुओं को
न गिनता ऐ हवा

बांटकर सुकूं
इठलाता ऐ हवा

पंछियों से आगे
बढ़ता रहता ऐ हवा

काश, मैं तुझ सा
होता ऐ हवा

रवायतों के पन्नों को ले
उड़ जाता ऐ हवा

आंसुओं को पल में
सुखा पाता ऐ हवा

दीवाना होता, मैं भी
सरगोशियाँ करता ऐ हवा

बहारों को फूलों से
सजाता ऐ हवा

मोहब्बत के दामन को
उड़ाता रहता ऐ हवा

बच्चों के अरमानों सा
उड़ता ऐ हवा
काश...काश....काश
मैं तुझ सा होता ऐ हवा...
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