Sunday, February 26, 2012

वो और मैं...



फोटो गूगल से साभार 

वो देता गुमशुदा यादें/
मैं कलम में जस्ब कर लेता//

वो सिरहाने तनहाइयाँ रख जाता/
मैं पुरवाइयों में बहा देता//

वो दिन में बेचता सपने/
मैं उम्मीदें भी चुरा लेता//

वो अँधेरे बेपनाह देता/
मैं उन्हें रौशनी से रंग देता//

वो छीन लेता नींद रातों  की/
मैं किताबों से दोस्ती कर लेता//

वो बदलता रास्ता खुशियों का/
मैं उनका सफ़र खुद तय करता//

वो देता मुझको बेबसी/
मैं खुदी का क़त्ल कर लेता//

वो दिल में दर्द रख देता/
मैं दिल से मुंह चुरा लेता//

वो मुझको तोड़ता रहता/
मैं दिनबदिन बनता ही जाता//

खुदा कहते हैं गर तुझको/
हम भी मुकद्दर के सिकंदर हैं//

खुदाई तेरी देख ली मैंने/
वादा है, जब मिलेंगे
हम भी सवाल पूछेंगे//

-----निखिल श्रीवास्तव-----

Wednesday, February 15, 2012

दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़



फोटो गूगल से साभार 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 

वो शीशे-संगमरमर का ताजमहल, 
चंद पन्नों में प्यार को समेटने की वो होड़
वो उम्र से आगे भागते सपने 
दिल से दरकती वो धड़कन...

वो ऑटो की किचकिच, सड़कों पे शोर 
हमारी आशिकी का वो सुनहला सा दौर
वो रूठना तुम्हारा, मेरा कहना वंस मोर 
मेरी मैटिनी शो की वो प्लानिंग 
तुम्हारा कहना, च्वाइस इस योर्स 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 

वो वेलेंटाइन्स डे की भोर,
और मेरे सेल फोन का वो शोर  
वो मिस काल की लिस्ट में, 
प्यारा सा तुम्हारा वो नाम हर ओर...
वो मानाने की तुमको कोशिश पुरजोर 
गुस्से में तुम्हारा कहना 
यु डोंट लव में एनीमोर 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 
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