Thursday, November 1, 2012

क्यूं?



चांद ये सुर्ख सा क्यूं हैं
क्यूं बेसुब जर्द है सूरज
कदम आहिस्ते रखता हूं
निशां गुमनाम सब क्यूं हैं

क्यूं धरती बह रही है यूं
समंदर थम गए क्यूं हैं
आसमां देखता मैं हूं
धुआं बेरंग सा क्यूं है

मकां क्यूं ढह गए सारे
क्यूं दुकानें बिक रही हैं ये
नजरें बंद करता हूं
ख्वाब ये जागते क्यूं हैं

सुबहें नींद में क्यूं हैं
क्यूं ये शब जागती हैं
खोजता रात भर मैं हूं
शमा के राज क्यूं गुम हैं

क्यूं ये तनहाई बोलती है
शोर खामोश से क्यूं हैं
फिरता मैं अकेला हूं
हमसफर भीड़ क्यूं गुम है

बारिश सूखी हुई क्यूं है
क्यूं हवाएं भीगी हैं
रोना चाहते है वो
आखें बंजर मेरी क्यूं हैं

पंछी पिंजरों क्यूं हैं सब
क्यूं चुपचाप हैं डालें
मंजिल को चले हैं वो
दोराहे मेरे क्यूं गुम हैं

ख्वाहिश लापता क्यूं है
क्यूं जुम्बिश में खलिश सी है
रातें जागते वो हैं
नींदें मेरी क्यूं गुम हैं ।।

-------निखिल श्रीवास्तव 


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