Tuesday, April 9, 2013

गुज़रते वक़्त और रिश्तों का म्यूजियम

फोटो गूगल से साभार


फेसबुक कमाल की उत्पत्ति है। इसके छोटे से नाम में कितनी बड़ी दुनिया और एक अलग ही सभ्यता नित बन बिगड़ रही है, अंदाज़ा लगाना भी मुमकिन नहीं है। हाँ, कुछ रेशे जरुर पकड़ में आ जाते हैं। शायद यही वजह है कि मुझे कभी कभी महसूस होता है कि इस ख़ास सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट ने उम्र, वक़्त और रिश्तों का एक चलायमान वर्चुअल म्यूजियम बना दिया है। म्यूजियम इसलिए कि आप चाहकर भी किसी पल को पलट नहीं सकते, किसी टूटे धागे को जोड़ नहीं सकते। बह गए को वापस हासिल नहीं कर सकते। एक नज़र जी भर उन्हें देख सकते हैं बस। 

मोटे तौर पर देखें तो इस म्यूजियम में दो गैलरी हैं। एक है हमारी खुद की टाइमलाइन यानी हमारे अपने रिश्तों और उम्र की गैलरी और दूसरी गैलरी है इंसान से जुड़े तमाम शास्त्रों की। धर्म, संप्रदाय, राजनीति, अर्थ, साहित्य, ज़ाति, विद्रोह, क्रांति और तमाम अगड़म-बगड़म बातों और घटनाओं के रेशे तस्वीरों और शब्दों के सांचे में ढल कर इस गैलरी में सज रहे हैं।  

हमने शायद ही कभी अपनी प्रोफाइल के तमाम ऐसे फीचर्स पर गौर किया हो, जो वक़्त बेवक्त हमें बता देते हैं कि आप रिश्तों के मामले में कितने गंभीर, सचेत और सजग हैं। कौन सा रिश्ता कितना चला, किसने आपको सबसे ज्यादा पसंद किया और कौन-कब-कैसे आपकी ज़िन्दगी में दाखिल हुआ या फिर किसने किस वजह से किसी दिन आपकी दुनिया से रुखसत ले ली। 

फेसबुक पर जब भी किसी से अपनी दोस्ती जांचने के लिए एक ख़ास बटन पर क्लिक करता हूँ, तो बरबस ही वो ख़त याद आ जाते हैं जो एक ज़माने में हमारे लिए रिश्तों की एक मात्र जमा पूंजी हुआ करते थे। लकड़ी के किसी तखत के नीचे अल्युमिनियम या लोहे के बक्से में बड़े जतन से हर ख़त को संजोकर रखा जाता था। जब भी किसी की याद आती थी, वो बक्सा खुलता था। उस दौर में और ऐसा कुछ भी नहीं था जो बता सके कि कब, कौन और कैसे आपकी ज़िन्दगी में दाखिल हुआ। 

इस रिश्तों के म्यूजियम में हर पल का हिसाब मौजूद है। कब कौन आपका दोस्त बना, कब आपको इश्क हुआ और कब आप वापस किसी रिश्ते से छिटककर तनहा रह गए। कब कोई ख्वाब अधूरा रह गया और किस बरस आपने सबसे ज्यादा नए रिश्तों के लिए हामी भरी, इसका भी ब्यौरा इस म्यूजियम में कैद है वो भी तस्वीरों के साथ. 

अगर आपने भी कभी मेरी तरह इस म्यूजियम की टाइमलाइन पलटी होगी, तो आप भी तमाम एहसासों से गुज़रे होंगे। आपने कुछ चेहरों की तलाश भी की होगी और अचानक आपको एहसास हुआ होगा कि न जाने कब किसी रिश्ते की महीन डोर टूट गई। कुछ चेहरे आपके इस म्यूजियम में नहीं नज़र आये होंगे। किसी ख़ास तारीख पर दोस्तों के वो कमेन्ट देखकर मुस्कुराये भी होंगे, जब आपने पहली बार अपने सिंगल स्टेटस को इन अ रिलेशनशिप में तब्दील किया था। 

सबसे खूबसूरत बात ये कि सोशल मीडिया पर मौजूद हर शख्स ने अपनी ज़िन्दगी का एक म्यूजियम बना लिया है। कुछ इससे रु ब रु हैं तो कुछ बेखबर। कई रिश्तों को बीते दौर के खतों की तरह सहेज रहे हैं तो कुछ में होड़ है रिश्तों को आंकड़ों में ढालने की। और मैं, आवारा पथिक की तरह इसकी हर गली, हर मोहल्ले और चौराहे पर लगी नुक्कड़ बैठक को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। अंग्रेजी में शायद हम जैसों के लिए एक शब्द बना है। ऑब्जर्वर। बड़ा ही सोफेस्टिकेटेड है न! 

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही बेहतरीन सार्थक आलेख,आभार.

ANULATA RAJ NAIR said...

intense observation.....

anu

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